बच्‍चेा में शरारत नहीं तो फिर वो बच्‍चे नहीं

बचपन शरारतों और मासूम हरकतों से भरा होता है। बच्चों का जिज्ञासु मन उन्हें नई चीजें खोजने और प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है, और इस प्रक्रिया में वे कई बार शरारतें भी कर जाते हैं। वास्तव में, बच्चों में थोड़ी शरारत होना स्वाभाविक है और यह उनके विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

कई माता-पिता बच्चों की शरारतों से परेशान हो जाते हैं और उन्हें तुरंत डांटने या रोकने की कोशिश करते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे हमेशा शांत और अनुशासित रहें। जबकि बच्चों को अनुशासन सिखाना जरूरी है, उनकी स्वाभाविक शरारतों को दबाना उनके व्यक्तित्व विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

शरारतें बच्चों को नए अनुभवों से सीखने का अवसर देती हैं। जब वे कोई शरारत करते हैं, तो वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि इसका क्या परिणाम होगा। यह उन्हें कारण और प्रभाव के संबंध को समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा पानी से खेलता है और फर्श गीला कर देता है, तो वह सीखता है कि पानी फैलाने से क्या होता है।

शरारतें बच्चों की रचनात्मकता और कल्पना शक्ति को भी बढ़ावा देती हैं। जब वे खेलते हैं और नई चीजें आजमाते हैं, तो वे अपनी कल्पना का उपयोग करते हैं और नए विचार उत्पन्न करते हैं। एक खाली डिब्बे को कार बनाना या चादरों से किला बनाना शरारतों के ही रचनात्मक रूप हैं।

शरारतें बच्चों को सामाजिक कौशल सीखने में भी मदद करती हैं। जब वे दूसरे बच्चों के साथ खेलते हैं और शरारतें करते हैं, तो वे यह सीखते हैं कि दूसरों के साथ कैसे बातचीत करनी है, कैसे सहयोग करना है और कैसे अपनी गलतियों को स्वीकार करना है।

शरारतें बच्चों के तनाव को कम करने और उन्हें खुश रहने में भी मदद करती हैं। हंसना और खेलना बच्चों के लिए तनाव दूर करने का एक स्वाभाविक तरीका है। थोड़ी सी शरारत उन्हें हल्का महसूस कराती है और वे अधिक खुश और उत्साहित रहते हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि माता-पिता बच्चों की शरारतों और हानिकारक व्यवहार के बीच अंतर करें। ऐसी शरारतें जिनसे किसी को नुकसान पहुंचता है या जो खतरनाक हैं, उन्हें निश्चित रूप से रोकना चाहिए। लेकिन, मासूम और हानिरहित शरारतों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

माता-पिता को अपने बच्चों के साथ खेलना चाहिए और उनकी शरारतों में शामिल होना चाहिए। यह न केवल बच्चों को खुशी देगा, बल्कि माता-पिता और बच्चों के बीच एक मजबूत बंधन भी बनाएगा।

बच्चों को यह सिखाना भी जरूरी है कि अपनी शरारतों की जिम्मेदारी कैसे लेनी है। यदि वे कोई गलती करते हैं, तो उन्हें उसे स्वीकार करना और उससे सीखना चाहिए।

अंततः, बच्चों में थोड़ी शरारत होना उनके स्वस्थ विकास का संकेत है। यह उनकी जिज्ञासा, रचनात्मकता और सामाजिक कौशल को बढ़ावा देती है। माता-पिता को बच्चों की मासूम शरारतों को प्यार और धैर्य के साथ संभालना चाहिए और उन्हें सीखने और बढ़ने का अवसर देना चाहिए।

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