हरिद्वार – परम पावन पुण्यभूमि का दर्शन

संस्मरण)

जब बात पिकनिक की होती है, तो चाहे बच्चे हों या वयस्क, सभी के मन में उत्साह और उमंग की लहरें हिलोरें मारने लगती हैं। पूरे वर्ष के कार्यभार से कुछ समय के लिए ऐसी जगह जाना जहां मन को प्रसन्नता और आत्मा को शांति मिले, सच में एक वरदान लगता है।मैं नोएडा (उत्तर प्रदेश) निवासी हूं। यह शहर आधुनिकता और औद्योगिक विकास का प्रतीक है – हाईटेक सिटी, बहुमंजिला अपार्टमेंट, विशाल शॉपिंग मॉल, कृत्रिम झीलें और वॉटर पार्क्स यहां आम हैं। लेकिन इन सबसे जो मिलता है, वह क्षणिक आनंद है – शांति नहीं।

शहर के शोरगुल और प्रदूषण से दूर एक ऐसी जगह की तलाश थी जिसे मैंने अपने बचपन से लेकर अब तक हर बार चुना – देवभूमि उत्तराखंड का हरिद्वार और ऋषिकेश। यह वही भूमि है जहां ऋषियों-मुनियों ने तपस्या की। माता-पिता के समय में भी हम सभी ने सहमति से इस स्थल को चुना था और आज भी हम सबने इसे ही चुना।हमने दोपहर लगभग 3 बजे नोएडा से अपनी गाड़ी द्वारा प्रस्थान किया। हल्के जलपान हेतु मेरठ बाईपास स्थित मूलचंद रेस्टोरेंट पर थोड़ा ठहरे, फिर यात्रा आगे बढ़ाई। चार घंटे बाद जैसे ही रुड़की मार्ग पार किया, हरिद्वार की सीमा आरंभ हो गई। रास्ते के दोनों ओर का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत सुंदर और हृदय को शीतल करने वाला था।

हरिद्वार पहुंचते ही मां गंगा की पावन धारा ने मन को छू लिया। जैसे ही मां के दर्शन हुए, आंखों से ही नहीं, आत्मा से स्पर्श हुआ। गाड़ी पार्क कर होटल में ठहरे और फिर थोड़े विश्राम के बाद पहुंचे हर की पौड़ी। मां गंगा में डुबकी लगाते ही लगा जैसे पूरे वर्ष की थकान धुल गई हो। मां की गोद जैसा सुकून मिला।उसके बाद आरती का समय हुआ। गंगा सेवा ट्रस्ट द्वारा आरती की घोषणा हुई और हम सभी श्रद्धा के साथ उपस्थित हो गए। आरती का दृश्य ऐसा था जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता – दीपों की रौशनी, भजन की धुन, गंगा की कल-कल ध्वनि – मानो स्वयं मां गंगा बोल रही हों।

आरती के बाद भोजन करके हम मां मनसा देवी के दर्शन हेतु निकले। बिल्वा पर्वत पर स्थित यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है। चढ़ाई के मार्ग में अद्भुत वनस्पतियां, बहता जल, स्वच्छ वायु और पवित्रता – एक सम्पूर्ण उपचार जैसा अनुभव था।यात्रा का अंत हुआ, लेकिन जब लौटने लगे तो ऐसा महसूस हुआ जैसे मां से बिछड़ रहे हों। बच्चों के चेहरे पर उदासी थी – यह दर्शा रही थी कि उन्हें यह स्थान दिल से भाया। मुझे प्रसन्नता इस बात की थी कि जिन सांस्कृतिक मूल्यों में मैं पली-बढ़ी, वही संस्कार मेरी अगली पीढ़ी भी आत्मसात कर रही है।

एक मां, एक शिक्षिका और एक लेखिका के रूप में मेरा यह प्रयास है कि अपनी संतति और युवा वर्ग को इन मूल्यों से जोड़ सकूं। जब मैंने परिवार से भविष्य की योजना पूछी, तो सभी ने एक स्वर में कहा – “हम फिर हरिद्वार-ऋषिकेश जाना चाहेंगे।”

सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश
98712 69164

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