लद्दाख की खट्टी-मीठी अद्भुत पिकनिक स्मृति

पिकनिक दिवस की बात करें तो घूमना किसे पसंद नहीं होता! लेकिन प्रकृति की गोद में बिताया गया समय जो सुकून और आनंद देता है, वह अनुभव कहीं और संभव नहीं। ऐसी ही कुछ यादें हैं, जो हमेशा हमारे साथ रहेंगी—लद्दाख की यादें। लद्दाख, जो अपने आप में एक स्वप्नलोक जैसा प्रतीत होता है, जहां जाने के लिए लोग वर्षों प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन बीते दो वर्षों से यह वादी हमारे आसपास अपने सौंदर्य की छटा बिखेर रही है।

कहते हैं कि घूमने के लिए योजना बनानी पड़ती है, कुछ दूरी तय करनी पड़ती है। लेकिन लद्दाख ने इस धारणा को झुठला दिया। यहां घर के दरवाजे पर खड़े होकर ही आप प्रकृति की ऐसी अद्भुत झलक देख सकते हैं कि मन स्वतः ही प्रफुल्लित हो उठता है। सर्दियों में बर्फ से ढके पहाड़ ऐसे लगते हैं मानो सफेद फूलों की वर्षा हो रही हो—हर सुबह एक नई कविता की तरह उतरती है इन वादियों पर। नवंबर से फरवरी तक बर्फ की यह रजत-चादर हर दिन एक नया दृश्य रचती है।

वहीं मई से अक्टूबर तक, लद्दाख का मौसम हरियाली, नीले आकाश और चमकते सूरज की संगत में अलग ही रंग दिखाता है। बर्फ से ढके पहाड़ों पर सूरज की किरणें पड़ते ही ऐसा लगता है जैसे हीरे जगमगा रहे हों। सिंधु घाट, जिसकी धार कभी नीली, कभी हरी और कभी पारदर्शी हो जाती है, मन मोह लेती है। पत्थर साहिब गुरुद्वारा एक रहस्यमयी कहानी को जीवंत करता है। पैंगोंग झील और नुब्रा वैली तो ऐसे प्रतीत होते हैं मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो।

बचपन से ही मेरा सपना था कि मैं पहाड़ों के बीच जाकर उनकी सुंदरता को जी सकूं, अनुभव कर सकूं और वहीं से अपनी लेखनी की शुरुआत करूं। वह सपना इतना जल्दी और इस रूप में पूरा होगा, मैंने सोचा भी नहीं था। प्रकृति से मेरा जुड़ाव हमेशा गहरा रहा है। जो अनुभूति पहाड़ों, नदियों, पेड़ों के बीच मिलती है, वह किसी आलीशान घर की सजावट भी नहीं दे सकती। यही कारण है कि मैं मानती हूँ—हर व्यक्ति को जीवन में एक बार लद्दाख जैसी जगह जरूर देखनी चाहिए, जहाँ प्रकृति आपको स्वयं स्पर्श करती है, आपको अपना होने का अहसास कराती है। यही है मेरी लद्दाख की अनोखी और अविस्मरणीय पिकनिक कहानी—मेरी आत्मा से जुड़ी स्मृति।

– ज्योति राघव सिंह
स्थायी पता – वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान निवास – लेह-लद्दाख
87368 43807

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