पारिवारिक रिश्तों में दूर होता अपनापन-दीपमाला

“समय नहीं है मेरे पास” — वर्तमान में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा, जिसके मुखारविंद से हमें ये शब्द सुनाई न देते हों। चौबीस घंटे का जो समय कुदरत ने सृष्टि सृजन के आरंभ से सबको दिया है, वह अब भी बना हुआ है, परंतु अब मानवों में इतना मशीनीकरण हो गया है कि उनके पास अपनों के लिए ही समय नहीं है

टेक्नोलॉजी जितनी बढ़ रही है, इंसान उतना ही व्यस्त होता जा रहा है। हम टेक्नोलॉजी के ज़्यादा करीब और अपनों से दूर होते जा रहे हैं। हम व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम चलाने में घंटों समय लगा देते हैं, लेकिन अपनों के बीच बैठकर आधा घंटा रहना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है।

टेक्नोलॉजी का सबसे अधिक प्रभाव वर्तमान पीढ़ी पर हो रहा है क्योंकि वे उसी के साथ जन्म ले रहे हैं। बच्चा जैसे ही कुछ पकड़ने लायक होता है, हाथ में मोबाइल आ जाता है। उससे पहले भी बच्चों को चुप कराने और भोजन कराने जैसे कार्यों के लिए मोबाइल का सहारा लिया जाता है। हम खुश हो जाते हैं, लेकिन उसका बहुत ही घातक परिणाम होता है — बच्चे मोबाइल को ही अपनी पूरी दुनिया समझने लगते हैं।

बच्चे ही क्या, हमें भी लगता है कि हमारी सभी समस्याओं का समाधान मोबाइल में है, और हम परिवार से दूर होते जा रहे हैं।

रिश्तों में आती दूरियों के कुछ प्रमुख कारण —

  1. टेक्नोलॉजी — वर्तमान में हम अपनों के साथ कम और मशीनों के साथ अधिक समय बिता रहे हैं, जो हमें अपनों से दूर कर रहा है।
  2. पलायन — लोगों का रुझान शहरों की ओर अधिक बढ़ रहा है। गांव से शहर जा रहे लोग अपनों से दूर हो रहे हैं।
  3. एकल परिवार — अब संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवार होते जा रहे हैं, जिसके कारण रिश्तों का महत्व बच्चे नहीं समझ पा रहे।
  4. महिलाओं का कामकाजी होना — बाहर काम करने के कारण हम स्वयं एकल परिवार चुन रहे हैं। छोटे शहरों में महिलाएं बच्चों और कार्य के बीच संतुलन बनाए हुए हैं, परंतु महानगरों में अधिकांशतः बच्चे प्ले हाउस या आया के सहारे पलते हैं, जिससे वे मां की ममता, वात्सल्य, देखभाल जैसी भावनाओं को समझ ही नहीं पाते।
  5. भौतिकता के पीछे भागना — जीवन के लिए पैसा जरूरी है, लेकिन परिवार से ज्यादा नहीं — यह हम समझ नहीं पा रहे हैं। भौतिक सुविधा जुटाने की होड़ में परिवार पीछे छूटता जा रहा है। हम जिनके लिए सुविधा जुटा रहे हैं, उन्हीं को समय नहीं दे पा रहे हैं, और रिश्तों में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं।

समाधान

वर्तमान व्यवस्था से हम भाग नहीं सकते, क्योंकि वर्तमान से कदम से कदम नहीं मिलाया तो हम बहुत पीछे रह जाएंगे। अतः रिश्तों में मिठास बनी रहे, इसके लिए हम कुछ प्रयास कर सकते हैं —

  1. टेक्नोलॉजी का सीमित प्रयोग — जब आवश्यक हो तभी प्रयोग करें। परिवार साथ में हो तो उनके साथ समय बिताएं।
  2. भोजन साथ में करें — वर्तमान की भागमभाग में एक समय का भोजन साथ करना भी सौभाग्य की बात हो गई है। जहां तक संभव हो, एक समय का भी भोजन साथ करें — आत्मीयता बढ़ती है। और कोशिश करें कि भोजन घर में ही बने। थकान में बाहर से ऑर्डर कर लेने की प्रवृत्ति से बचें।
  3. त्योहारों में घर जाएं — आज अधिकांश बच्चे बाहर पढ़ते हैं, माता-पिता शहर में नौकरी करते हैं और दादा-दादी गांव में रहते हैं। कम से कम त्योहारों में साथ रहें, ताकि बच्चे त्योहार और अपनों दोनों का महत्व समझ सकें।
  4. बच्चों के सामने नकारात्मक बातें न करें — हम महिलाएं अक्सर खट्टी बातें घर या सखियों से साझा करती हैं, लेकिन बच्चों के सामने ये न करें, ताकि उनके मन में किसी के प्रति कड़वाहट न रहे।
  5. परिवार से मिलना — समय निकाल कर स्वयं भी और बच्चों को भी परिवार से मिलाएं, ताकि अपनापन बना रहे। बच्चे रिश्तों का महत्व जानें, क्योंकि कल उन्हें भी इसी दौर से गुजरना है।

व्यक्तिगत उदाहरण — मेरे ससुर जी का छह भाइयों का परिवार है। सब अलग-अलग जगहों पर रहते हैं। मेरा बेटा पहले किसी को नहीं जानता था। लेकिन परिवार के उत्सव में सभी आते हैं और हम भी जाते हैं, तो अब बच्चा जानने लगा है कि छोटे दादाजी हैं, ताऊजी हैं, चाचाजी हैं। क्योंकि मेरे पति अकेले भाई हैं, तो बच्चा पहले इन रिश्तों को समझ नहीं पाया था। इसी प्रकार अन्य रिश्तों को भी जानने और समझने लगा है।

पीढ़ियों के अंतर को कैसे पाटें

यह सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि जनरेशन गैप में विचारों का अंतर होता है। परंतु प्रयास किए जा सकते हैं —

  1. जबरदस्ती न थोपें — पुरानी पीढ़ी किसी भी चीज को बच्चों पर जबरदस्ती न थोपे, बल्कि उन्हें बचपन से ही हर चीज़ में शामिल करें, जैसे: रीति-रिवाज, संस्कृति आदि।
  2. समझौता स्वयं भी करें — वर्तमान में बच्चे समझौता नहीं करना चाहते, तो बड़ों को समझदारी से काम लेना होगा। उन्हें उनकी भलाई के लिए नए तरीके से समझाएं।
  3. परवरिश — बचपन से ही परवरिश ऐसी हो कि रिश्ते बोझ न लगें।
  4. स्वतंत्रता प्रदान करें — किसी भी व्यक्ति को अधिक कसने पर वह छूटता या टूटता है। हर किसी का अपना व्यक्तित्व होता है, उसमें निजता आवश्यक है। निगरानी के साथ स्वतंत्रता दें।
  5. समझना — एक-दूसरे की भावनाओं को समझें, सम्मान दें, सलाह लें — तभी प्रेम और विश्वास बना रहेगा।

महिलाओं की भूमिका इस बदलाव में

परिवार को संस्कारित करने से लेकर उसके संचालन तक, हमारी भूमिका अहम होती है। जब हम बहू बनकर किसी के घर जाते हैं, तो अनेक नए रिश्ते बनते हैं। नई जगह, नए लोग, नई सोच, नई जिम्मेदारियाँ — लेकिन हम निभा लेते हैं।

वर्तमान पीढ़ी यह सब स्वीकार नहीं कर पा रही है, जिससे तलाक जैसे प्रकरण बढ़ रहे हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी मां और सास के रूप में और बढ़ जाती है।

एक और अनुभव — मेरी एक मासी की दो बेटियाँ हैं। उन्होंने बेटियों की परवरिश बहुत अच्छे से की है। बड़ी बेटी M.Sc., B.Ed., PGDCA है। विवाह एक संपन्न परिवार में हुआ है। ससुराल में कोई आया नहीं है, फिर भी बेटी ने सभी कार्य सहजता से सँभाल लिए। कभी-कभी सास बेटे के कान भर देती हैं, जिससे बेटा चिड़चिड़ा हो जाता है और असर गृहस्थी पर पड़ता है। ऐसे में सास को समझना चाहिए कि बहू ने इतने पढ़ने के बावजूद गृहिणी बनना स्वीकार किया है।

महिला किसी भी रूप में हो, उसे रिश्तों को समझदारी से निभाना चाहिए।

हमारी भूमिका:

  1. बच्चे कच्ची मिट्टी होते हैं — उन्हें जैसे ढालें, वैसे बनते हैं। जड़ भरत, ध्रुव, प्रह्लाद जैसे बालकों की माताएं इसका उदाहरण हैं।
  2. चुनौतियाँ स्वीकारने की क्षमता — स्वयं में और बच्चों में विकसित करें।
  3. रिश्तों का महत्व स्वयं भी समझें — क्योंकि महिलाएं ही परिवार की धुरी होती हैं।
  4. टीवी सीरियल से दूरी बनाएँ — ये मायाजाल हैं, जिससे हम यथार्थ में नकल करते हैं और गृहस्थी व समय बर्बाद करते हैं।
  5. शिक्षा पर बल दें — शिक्षा सोच विकसित करती है, सही-गलत का निर्णय सिखाती है।
  6. बच्चों को दोनों पक्षों से जोड़ें — मायके पक्ष ही नहीं, ससुराल पक्ष से भी। यह संतुलन हमारी जिम्मेदारी है।
निष्कर्ष महिलाएं अपने सभी रूपों का महत्व समझें और सभी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाएँ। फिर देखें, रिश्तों की बगिया कैसे महकने लगती है।

मां संस्कारित करे, सास परिष्कृत करे।
बेटी मां को सम्मान दे, बहू सास को प्यार दे।

चुटकी नहीं, चलो ताली बजाते हैं —
सभी रिश्तों को हम फिर महकाते हैं।
हम ही तो हैं परिवार की धुरी —
चलो, सभी रिश्तों को हम फिर संवारते हैं।

– दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव (छ.ग.)
📞 9753024524

सह-संपादक- शालिनी दीक्षित प्रयागराज, एवरग्रीनलेडी

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