शादी एक ऐसा मजेदार लड्डू है जो खाए पछताए और जो ना खाएं वह भी पछताता है और यह भी सच है कि शादी में शामिल होने वाले बाराती भी अपनी जान जोखिम में डालकर ही दावत का मजा लूटने जाते हैं । मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि मुझे भी एक ऐसी शादी का न्यौता आया था । जहां राजी खुशी सज धज कर हम भी परिवार सहित दावत का लुफ्त उठाने पहुंचे पर अपनी जान बचा उलटे पैर वापस लौटे ।
दो साल पहले ,सामने वाले घर में चौहान जी अपने परिवार के साथ किराए पर रहने आए थे ।वह स्वभाव से बड़े नरम, बोलने में मृदुभाषी और वह बहुत ही सभ्य स्वभाव के थे इसीलिए मौहल्ले में वह सभी से जल्दी मिल घुल गए थे । पड़ोसी होने के नाते उनसे और उनके परिवार से हमारा वास्ता अक्सर पड़ता रहता था इसीलिए उन्होंने अपने चचेरे भाई की शादी में हमें भी चलने का न्यौता दिया। हम भी इसे अपना सम्मान समझ राजी हो गए और शादी पर जाने की तैयारी में जुट गए ।
जल्द ही शादी की वह शुभ बेला आ ही गई। सो हमारे पतिदेव भी अपनी इज्जत में चार चांद लगाने के लिए अपने दोस्त से गाड़ी मांग लाए। हम परिवार सहित, सज धज कर, शादी में शामिल होने के लिए निकल पड़े। शादी स्थल बुराड़ी के आसपास था। वहाँ जाने में इतना समय लग गया कि हम बैठे-बैठे गाड़ी में ही उकता गए।
भूख के मारे जान निकल रही थी सो रास्ते से ही चिप्स खरीद खरीद कर खाते रहे। लगभग 2 घंटे बाद विवाह स्थल पहुंचे ।
हमें लगा,अब ए सी बैंक्विट हॉल में बैठकर आराम से दावत उड़ाऐगे पर यह क्या,जैसे ही गाड़ी पार्क करके हम समारोह में शामिल होने को बडे, हमने देखा कि थोडी दूरी पर बहुत भीड़ जमा थी और खूब शोर शराबा एवं पत्थरबाजी हो रही थी। कहीं से ईंट उडती हुई आ रही थी तो कहीं से जूता। हम समझ नहीं पा रहे थे कि हम कहां आ गए है तभी अचानक गोली चलने की आवाज आई। भैया फिर हमने आव देखा ना ताव देखा, बच्चों का हाथ पकड़ कर भागे और अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए।

जब चौहान जी को फोन किया तो पता लगा की दूल्हे के फूफा ने शराब पीकर खाली बोतल, एक दीवार पर दे मेरी। बदकिस्मती से वह बोतल बाइक पर बैठे लड़की के ताऊ को लग गई और उनके सिर से खून बहने लगा। खून देखते ही लड़की वालो ने फूफा को घेर लिया। अब फूफा की इज्जत बचाने के लिए बारातियों को बीच में आना पड़ा । शादी तो दूर लड़की वाले व लड़के वालों मे बहस छिड़ गई। गुटबाजी हो गई और सबकी इज्जत पर बन आई । बस फिर क्या था जिसके हाथ जो लगा उसने वही उठाकर दूसरी पार्टी पर दे मारा । इतने मे ही पुलिस की गाडियाँ आती दिखाई दी और हम पतली गली से निकल लिए।
उफ्फ यह सब देख ही समझ आया कि जान बची सो लाखों पाए और लौट के बुद्धू घर को आए का सही मायनों में क्या अर्थ है। प्रभु का शुक्र है कि हम वहाँ देरी से पहुँचे और हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ।
सोनिया सरीन साहिबा
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दिल्ली